वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम

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मंच पर आसीन आदरणीय महानुभावों एवं मान्यवर श्रोताओं तथा प्यारे मित्रों आज मैं आपको वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम के विषय में अपने कुछ विचार आपके समक्ष रखना चाहता हूँ।

एकान्त स्थान में जाकर स्वाध्याय-साधना-सेवा करना वानप्रस्थ कहलाता है। वानप्रस्थ लेने का अधिकार गृहस्थी स्त्री अथवा पुरुष को है। परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्य पूरे हो जाने पर वानप्रस्थ लिया जाता है। स्वाध्याय करना, पंचमहायज्ञ, धर्म का आचरण और योगाभ्यास करना तथा निष्काम भाव से समाज की सेवा करना वानप्रस्थ के प्रमुख कर्त्तव्य हैं।

वानप्रस्थ के बाद अगला आश्रम संन्यास है। ईश्वर को प्राप्त करने तथा औरों को कराने के लिए संन्यास ग्रहण किया जाता है। आर्य जगत् के प्रसिद्ध तीन संन्यासी ये हैं- 1. स्वामी दयानन्द जी सरस्वती, 2. स्वामी श्रद्धानन्द जी एवं 3. स्वामी दर्शनानन्द जी। संन्यास ग्रहण के लिए वैराग्य होना अनिवार्य है। संन्यासी का मुख्य कार्य सत्योपदेश और राष्ट्र में वेद का प्रचार करना है। दण्ड, कमण्डल, काषाय वस्त्र धरण करने मात्र से कोई संन्यासी नहीं होता, उसके लिए संन्यासी के कर्म करने आवश्यक हैं। योग्य संन्यासी के न होने से समाज में अन्धविश्वास फैलता है। संन्यास ग्रहण करने का अधिकार पूर्ण धार्मिक एवं विद्वान् को है। भारत में लाखों की संख्या में संन्यासी हैं, फिर भी अधिकांश संन्यासी विद्या और वैराग्य से रहित हैं। उनमें अन्धविश्वास को दूर करने की न तो इच्छा है और न सामर्थ्य। अतः अन्धविश्वास, पाखण्ड दिनोदिन फैल रहा है।

धर्म के दस लक्षण हैं। 1. धैर्य, 2. क्षमा, 3. मन को धर्म में लगाना, 4. चोरी न करना, 5. शुद्धि, 6. इन्द्रियों पर नियन्त्रण, 7. बुद्धि बढ़ाना, 8. विद्या, 9. सत्य, 10. क्रोध न करना ये धर्म के दस लक्षण हैं। सत्योपदेश, वेद, धर्म का प्रचार करने वाला संन्यासी योग्य संन्यासी कहलाता है। योग के आठ अंग होते हैं- 1 यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान, 8. समाधि। घूम-घूम कर वेद प्रचार करनेवाले संन्यासी को परिव्राजक कहते हैं। संसार के विषयों को भोगने की इच्छा का न होना वैराग्य कहलाता है। अर्थात् तीनों एषणाओं (पुत्रैषणा, लोकैषणा तथा वित्तैषणा) का त्याग वैराग्य है। अपने- अपने वर्णाश्रम के कर्त्तव्यों को पूरा करते हुए व्यक्ति को अपने जीवन में संन्यास की योग्यता प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए.. इन्हीं विचारों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम दे रहा हूँ।

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