राव तुलाराम

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माँ भारती को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए शुरू हुई 1857 की क्रान्ति बेशक विभिन्न कारणों से विफल हो गई थी, लेकिन यह भी निर्विवाद सत्य है कि इसी क्रान्ति ने भारतीयों के मन मस्तिष्क में आजादी पाने का ऐसा जज्बा पैदा किया था, जिससे अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की इस पहली जंग में जहाँ एक ओर थे तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा व कुंअर सिंह जैसे जाने माने महान जांबाज तो वहीँ दूसरी ओर ऐसे भी अनेक योद्धा सेनानी रहे, जिन्हें भले ही हमने भुला दिया, इतिहास में उपयुक्त स्थान नहीं मिला, पर इससे उनका योगदान किसी से कम नहीं हो जाता। ऐसे ही रणबांकुरों में से एक थे रेवाड़ी स्थित रामपुरा रियासत के राजा राव तुलाराम। वैसे भी अहीरवाल का इतिहास वीरता की गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है और जंग-ए-आजादी में भी यहां के वीरों का अहम योगदान रहा था।

9 दिसम्बर 1825 को जन्मे राव तुलाराम, जो कि 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे, को हरियाणा राज्य मे ‘राज नायक’ माना जाता है। उनका जन्म हरियाणा राज्य के रेवाड़ी शहर में एक यादव (अहीर) परिवार में राव पूरन सिंह तथा ज्ञान कुँवर के पुत्र के रूप में हुआ था। इनके दादा का नाम राव तेज सिंह था। जब तुलाराम मात्र 14 वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था और पिता की मृत्यु के बाद राज्य का सारा भार उनकी माता जी पर आ गया। उस समय देश पर अंग्रेजों का शासन था और जब एक 14 साल का बच्चा राज गद्दी पर बैठा हो तो इस बात को अंग्रेज उस राज्य को हथियाने के एक अवसर के रूप में देखते थे।

अंग्रेज चाहते थे कि वह इस प्रांत को अपनी सीमाओं के अन्दर ले लें और राज्य के लोगों से कर लेकर इनका शोषण करें। इसी बीच अंग्रेजी शासकों को राव तुलाराम को परेशान करने का बहाना भी मिल गया क्योंकि देश भक्ति का परिचय देते हुए राव राज-वंश ने मराठा-ब्रिटिश संघर्ष के समय मराठों का साथ दिया था। इससे नाराज होकर फिरंगियों ने उनकी जागीर को धीरे-धीरे घटाकर इतना छोटा कर दिया कि एक समय राव तुलाराम के पूर्वजों के पास 87 गाँवों पर आधारित जागीर, जिसकी उस समय की कीमत लगभग 20 लाख रूपये रही होगी, मात्र एक लाख रूपये रह गई। अतएव फिरंगी सरकार से रेवाड़ी के राजवंश का नाराज होना स्वाभाविक था।

इस बीच जब मई 1857 की क्रांति की लहर अहीरवाल क्षेत्र में पहुची तब राव राजा ने भी क्रांति का बिगुल बजा दिया। राव तुलाराम ने इस इलाके से अंग्रेजी सेना के खात्मे का एलान कर दिया। क्रांतिकारी नेताओं ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा कर बहादुरशाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। अंग्रेज गुड़गांव व आसपास का इलाका छोड़ कर भाग गए तथा इस पूरे इलाके पर राव तुलाराम का शासन कायम हो गया। उन्होंने खुद को स्वतंत्र घोषित करते हुये राजा की उपाधि धारण कर ली थी। 1857 की क्रांति में हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम इलाके से सम्पूर्ण बिटिश हुकूमत को अस्थायी रूप से उखाड़ फेंकने तथा दिल्ली के ऐतिहासिक शहर में विद्रोही सैनिकों की, सैन्य बल, धन व युद्ध सामग्री से सहायता प्रदान करने का श्रेय राव तुलाराम को ही जाता है।

गुस्साये अंग्रेजों ने संगठित होकर राव तुलाराम को घेरने की कोशिश की। इस दौरान ही 16 नवंबर 1857 को नारनौल के समीप नसीबपुर के मैदान में अंग्रेजों व भारतीय योद्धाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा, पर उनके भी पाँच हजार से अधिक अहीर, राजपूत व ब्राह्मण योद्धा मारे गए। आगे की लड़ाई की रणनीति तय करने हेतु वह तात्या टोपे से मिलने गए, परंतु 1862 मे तात्या टोपे के बंदी बना लिए जाने के कारण उनकी यह योजना विफल हो गयी। अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के उद्देश्य से एक बड़ा और निर्णायक युद्ध लड़ने में सैनिक सहायता लेने के लिए राव तुलाराम ने अंग्रेजी सेना को चकमा देकर भेष बदलकर अपने विश्वसनीय साथियों के साथ भारत छोड़ दिया और ईरान व अफगानिस्तान के शासकों से मुलाकात की, साथ ही रूस के ज़ार के साथ सम्पर्क स्थापित करने की उनकी योजनाएँ थीं।

परंतु भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और अथक परिश्रम एवं अनवरत भागदौड़ ने उनके शरीर को रोगों से ग्रसित कर दिया। काबुल पहुचकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चाबंदी मजबूत करने से पहले ही उनका स्वास्थ्य इतना खराब हो गया कि 38 वर्ष की आयु में 23 सितंबर 1863 को काबुल में आजादी का यह महानायक सदा के लिए सो गया, परतु आजादी की जो चिंगारी उन्होने सुलगाई थी, वही भविष्य में ज्वाला बनकर देश को आजाद कराने का कारण बनी। काबुल से राव तुलाराम की अस्थिया लाने के लिए कुछ वर्ष पूर्व प्रयास भी शुरू हुए थे, लेकिन यह प्रयास अन्यान्य कारणों से सिरे नहीं चढ़ पाये।

वर्ष 1957 में जब भारत सरकार ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शताब्दी मनाई, तब राव तुलाराम की स्मृति में सरकार ने नारनौल (नसीबपुर युद्ध क्षेत्र), रेवाड़ी और रामपुरा में शहीदी स्मारक बनवाए। हरियाणा सरकार ने भी 23 सितम्बर को राव तुलाराम व अन्य शहीदों को श्रद्धांजलि देने हेतु राजकीय अवकाश घोषित किया हुआ है। 23 सितम्बर 2001 को भारत सरकार ने महाराजा राव तुलाराम की स्मृति मे डाक टिकट जारी किया।

उनके नाम से रेवाड़ी में कई महत्वपूर्ण स्थान मनाये गए हैं। एक चौक पर उनकी प्रतिमा लगाई गई हैं और उनके नाम से एक पार्क और एक स्टेडियम भी बनाया गया है। उनके सम्मान में दिल्ली में भी कई संस्थानों के नाम हैं, जिनमें जफरपुर कलाँ का ‘राव तुलाराम मेमोरियल चिकित्सालय’, महाराजा राव तुलाराम मार्ग व महाराजा राव तुलाराम पोलिटेक्निक, वजीरपुर चिराग दिल्ली प्रमुख हैं। रामपुरा गांव में राव तुलाराम के वंशज अभी भी रहते है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह और उनके दो भाई राव तुलाराम के ही वंशज हैं। आज उनके जन्मदिवस पर राव तुलाराम को शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी

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