रामचंद्र नारायण द्विवेदी (कवी प्रदीप )

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देश प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत भावनाओं को सुन्दर शब्दों में पिरोकर जन-जन तक पहुँचाने वाले कवि प्रदीप का आज निर्वाण दिवस है। 6 फ़रवरी 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में औदीच्य ब्राह्मण परिवार में नारायण भट्ट के पुत्र के रूप में जन्मे कवि प्रदीप का असली नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। शुरुआती शिक्षा इंदौर के शिवाजी राव हाईस्कूल में में करने के बाद उनकी शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई, जो उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छा रहा और उनकी अंतश्चेतना में दबे काव्यांकुरों को फूटने का पर्याप्त अवसर मिला।

यहाँ उन्हें हिन्दी के अनेक साहित्य शिल्पियों का स्नेहिल सान्निध्य मिला। वे गोष्ठियों में कविता का पाठ करने लगे। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने लखनऊ की पत्रिका ‘माधुरी’ के फ़रवरी, 1938 के अंक में प्रदीप पर लेख लिखकर उनकी काव्य-प्रतिभा पर स्वर्ण-मुहर लगा दी। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र ‘प्रदीप’ कहलाने लगे। 1939 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश कर शिक्षक बनने का प्रयास किया, लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में भाग लेने का न्योता मिला। कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर ‘बाम्बे टॉकीज स्टूडियो’ के मालिक हिंमाशु राय काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही अशोक कुमार एवं देविका रानी अभिनीत फ़िल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की।

1939 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कंगन’ में उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फ़िल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। सन 1943 में ‘बॉम्बे टॉकीज’ की ही पांच फ़िल्मों- ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे। इसी बीच 1942 में कवि प्रदीप का विवाह मुम्बई निवासी गुजराती ब्राह्मण चुन्नीलाल भट्ट की पुत्री सुभद्रा बेन से हुआ और वे दो पुत्रियों ‘मितुल’ और ‘सरगम’ के पिता बने।

प्रारम्भ में वे अपना पूरा नाम रामचन्द्र नारायण दिवेदी ‘प्रदीप’ लिखते थे, किन्तु एक बार हिमांशु राय ने कहा कि ये रेलगाड़ी जैसा लम्बा नाम ठीक नही है, तभी से उन्होंने अपना नाम केवल ‘प्रदीप’ रख लिया। परंतु बाद में अभिनेता और कलाकार प्रदीप कुमार के इसी नाम की वजह से लोगों में भ्रम होते देख उन्होंने प्रदीप के पहले ‘कवि’ शब्द जोड़ दिया और यहीं से कवि प्रदीप के नाम से वे प्रख्यात हुए। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज़ का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया।

वर्ष 1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए और इसके लिये उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। 1940 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘बंधन’ के ‘चल चल रे नौजवान…’ के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू-सा प्रभाव डाला था। सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा।

अपने गीतों को प्रदीप ने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया| वर्ष 1943 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘किस्मत’ में प्रदीप के लिखे गीत ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियां वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसे गीतों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा, वहीं अंग्रेज़ों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए और उनकी गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा।

इसके बाद वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘मशाल’ में उनके रचित गीत ‘ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल, बीच में है धरती ‘वाह मेरे मालिक तुने किया कमाल’ भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद कवि प्रदीप ने पीछे मुड़कर नही देखा और एक से बढ़कर एक गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। वर्ष 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘नास्तिक’ में उनके रचित गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’ समाज में बढ़ रही कुरीतियों के ऊपर उनका सीधा प्रहार था।

वर्ष 1954 में ही फ़िल्म ‘जागृति’ में उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे। इस फ़िल्म के ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ और ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं।

पर सबसे अधिक अगर प्रदीप जी को किसी गीत के लिए याद किया जाता है तो वो है, ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’ जिसे साठ के दशक में चीनी आक्रमण के बाद 26 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था। इस गीत के कारण ‘भारत सरकार’ ने कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था। इस गीत से मिलने वाली रॉयल्टी की राशि शहीद सैनिकों की विधवा पत्नियों को देने के लिए आग्रह कर प्रदीप जी ने अपने विशाल हृदय का ही परिचय दिया था।

पहली ही फ़िल्म में कवि प्रदीप को गीतकार के साथ-साथ गायक के रूप में भी लिया गया था, परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना `जागृति’ फ़िल्म का गीत जिसके बोल हैं – आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की| संगीत निर्देशक हेमंत कुमार, सी. रामचंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों का उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। `पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय’, `टूट गई है माला मोती बिखर गए’, कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई’, जैसे भावना प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फ़िल्म जगत के गायकों में अपना अलग ही महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था।

कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ (1961) तथा ‘फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड’ (1963) शामिल हैं। यद्यपि साहित्यिक जगत में प्रदीप की रचनाओं का मूल्यांकन पिछड़ गया तथापि फ़िल्मों में उनके योगदान के लिए भारत सरकार, राज्य सरकारें, फ़िल्मोद्योग तथा अन्य संस्थाएँ उन्हें सम्मानों और पुरस्कारों से अंलकृत करते रहे। 1995 में राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी गई और 1998 में प्रतिष्ठित ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया। खेद का विषय यह है कि ऐसे महान देश भक्त, गीतकार एवं संगीतकार को भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया।

कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 1700 गाने लिखे। ‘बंधन’ के अपने गीत ‘रुक न सको तो जाओ तुम’ को यथार्थ करते हुए 11 सितम्बर, 1998 को राष्ट्रकवि प्रदीप का कैंसर से लड़ते हुए 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन ने उनके गीत, उनका गायन और स्वर संयोजन देखकर कहा था कि- “तुम्हें कोई ‘आउट’ नहीं कर सकता।“ प्रदीप मर कर भी आउट नहीं हुए हैं। वे अब अपने गीत की पंक्तियों में अमर हो गए हैं। उन्हें शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी

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