कहा यही देवन को देव महादेव आप ?
यही नीलकण्ठ वैकुण्ठ को विहारी है।।
अनाथों को नाथ आप ऐसो है अनाथ डाक।
डमरू के साथ जो पिनाक हस्तधारी है ?।।
काल हू को काल रुंडमाल जटाधारी कहा।
यही है कामारी जाको नेत्र प्रलयकारी है।।
शंकर को मूल मूलशंकर शोचत महा-
त्रिशूल को धारी कहा यही त्रिपुरारी है।।५।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई