“यजन”
यज्ञार्थ ही तू धन कमा।
यज्ञार्थ ही तू भोजन पका।
मन का रे तू यज्ञ बना,
प्राण हो जाए तेरा साम पगा।। टेक।।
त्यागन अर्चन संगठन है यज्ञ बड़ा।
सुविश्व अपना है यजन रचा।।
तन मन प्राण वाक् वेद सना।
यज्ञार्थ ही है मानव बना।। 1।।
बहुत बटोरते विश्व में धन घना।
त्यागन जिया ही हुआ गौरव पदा।।
धर्ममय सुखी जीवन सधा।
अर्थ काम मोक्ष भी सहजता।। 2।।
सुकवचित है यजन। मन भावन सजा।
ब्रह्म रक्षित है जिसमें भरी वेद भावना।। 3।।