शल्यक्रिया के क्षेत्र में सबसे आगे सुश्रुत का नाम है। आप एक प्रसिद्ध व कुशल शल्य चिकित्सक थे। शल्य का शाब्दिक अर्थ है शरीर की पीडा। इस पीडा या दर्द का निवारण करना ही शल्य चिकित्सा कही जाती है। आंग्ल भाषा में उसे ‘सर्जरी’ अथवा ‘ऑपरेशन’ भी कहते हैं। सामान्यतः यह भ्रम है कि शल्यक्रिया का प्रारम्भ यूरोप में हुआ था। परन्तु भारत देश में तो यह प्राचीन काल से ही अत्यन्त विकसित रूप में विद्यमान रही है।
शल्यक्रिया का ज्ञान वैसे तो पुरातन काल से ही मानव को था। परन्तु वह विकसित अवस्था में न होने के कारण अत्यन्त पीडादायक प्रक्रिया के रूप में था। उसमें मरण सम्भावना भी अधिक मात्रा में थी। सुश्रुत ही ऐसे प्रथम चिकित्सक थे जिन्होंने शल्यक्रिया को एक व्यवस्थित स्वरूप दिया। आपने इस विधा का परिष्कार करके अनेकों मनुष्यों को स्वास्थ्यलाभ देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
सुश्रुत महान् ऋषि विश्वामित्र के वंशज थे। ऋषि विश्वामित्र भी एक वैज्ञानिक थे। आपने एक नई ही सृष्टि की रचना कर दी थी। सुश्रुत द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुत संहिता’ के लिए कहा जाता है कि इस ग्रन्थ में स्वर्ग के देवताओं द्वारा पूजे जानेवाले वैद्यराज ‘धन्वन्तरी’ के उन उपदेशों का संग्रह है जो उन्होंने सुश्रुत को दिए थे। शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में सुश्रुतसंहिता को आज भी प्रमाणभूत माना जाता है।
‘प्लास्टिक सर्जरी’ को आज-कल चिकित्सा विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। अमेरिका के वैज्ञानिक इसका श्रेय लेते हैं। परन्तु सुश्रुत ने अपने इस ग्रन्थ में प्लास्टिक सर्जरी का उल्लेख सैकड़ों वर्षों पूर्व ही कर दिया था। इस पद्धति में नाक, कान, ओठ, अथवा चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए उस-उस स्थान का मांस दूर करके शरीर के ही किसी भाग का मांस लगाकर उसे सुन्दर रूप दिया जाता है। इस पद्धति का आधार लेकर ही प्राचीन काल के लोग अपना रूप बदल लेते थे। सुश्रुत की इस पद्धति का अनुसरण यूरोप ने किया। आज विश्वभर में यह पद्धति प्रचलित है।
सुश्रुत संहिता का समय ईसा पूर्व 600 वर्ष का माना जाता है। यह ग्रन्थ मूल संस्कृत भाषा में लिखा गया था। ईसा की प्रथम शताब्दि अर्थात् वि.सं. 57 के आसपास सुप्रसिद्ध रसायनवेत्ता नागार्जुन ने उसे पुनः सम्पादित कर नया ही स्वरूप दिया था। महर्षि सुश्रुत अपने विद्यार्थियों को प्रयोग तथा क्रियाविधि से पढ़ाते थे। आप चीरफाड़ का प्रारम्भिक अभ्यास शाकभाजी और फलों पर कराते थे। इस अभ्यास के पूर्ण हो जाने पर मृत शरीरों (शवों) पर अभ्यास कराया जाता था। वे स्वयं शवों पर ऑपरेशन कर दिखाते तथा वहीं विद्यार्थियों से भी अभ्यास कराते थे। आपने शल्यचिकित्सा के लिए एक सौ से भी अधिक यन्त्रों एवं औजारों का आविष्कार किया।
सुश्रुत संहिता में भिन्न-भिन्न प्रकार के वनस्पतियों का भी विश्लेषण करके उनका विस्तार से वर्णन किया है। महर्षि सुश्रुत का मानना था कि चिकित्सक को सैद्धान्तिक और किताबी ज्ञान के स्थान पर प्रयोगात्मक ज्ञान में कुशल होना चाहिए।