भोगों को भोगने में कुछ दोष
प्रथम दोष : भोगों को भोगने से विषयभोग की इच्छा न्यून नहीं होती अपितु पूर्व की अपेक्षा अतितीव्र हो जाती है, विषयसेवन से कोई लाभ नहीं होता है।
दूसरा दोष : विषय सेवन से शरीर की शक्ति नष्ट हो जाती है। जिससे शरीर के द्वारा सम्पन्न होनेवाले कार्यों को व्यक्ति नहीं कर सकता।
तीसरा दोष : शरीर में विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं, जिनसे व्यक्ति सदा दुःखी रहता है।
चौथा दोष : सांसारिक सुख भोगने के लिए धन-सम्पत्ति आदि अनेक पदार्थों का उपार्जन करना पड़ता है।
पांचवां दोष : सुख के साधनों को सुरक्षित करने के लिए महान् परिश्रम करना पड़ता है।
छठा दोष : जब सुख के लिए प्राप्त किए गए पदार्थ नष्ट हो जाते हैं तो अर्जनकर्ता को बहुत दुःख होता है।
सातवां दोष : भोगों को भोगने से व्यक्ति उनमें इतना आसक्त हो जाता है कि उनमें दोष दिखने पर भी छोड़ना नहीं चाहता है और यदि उनको वह छोड़ना चाहता है, तो भी उनका छूटना अति कठिन हो जाता है।
आठवां दोष : सांसारिक सुख प्राप्ति के लिए व्यक्ति अनेक प्राणियों की हिंसा करता है, जिस हिंसा का भयंकर दुःखरूपी फल ईश्वर की ओर से उसे मिलता है।