भास्कराचार्य

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भास्कराचार्य का जन्म वि.सं. 1114 में हुआ था। कुछ लोग आपका जन्मस्थान कर्नाटक का बीजापुर मानते हैं तथा कुछ लोग बिज्जडित नामक ग्राम जो वर्तमान में महाराष्ट्र का जलगांव नामक जिला है मानते हैं। भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वर था। वे गणित के प्रकांड पंडित थे।

गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का सार यह है कि पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। इस सिद्धान्त को खोजने का श्रेय आधुनिक वैज्ञानिक न्यूटन को दिया जाता है। न्यूटन ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सन 1668 में किया था। परन्तु भास्कराचार्य ने उनसे भी 500 वर्ष पूर्व इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।

भास्कराचार्य की ख्याति एक महान् गणितज्ञ और खगोल वैज्ञानिक के रूप में हुई थी। आपका मुख्य ग्रन्थ ‘लीलावती’ गणित के क्षेत्र में एक महान् सिद्धि मानी जाती है। लीलावती आपकी पुत्री का नाम था, जिसे आप अत्यध्ािक चाहते थे। इसलिए आपने इस ग्रन्थ को अपनी पुत्री का नाम दिया है। लीलावती छन्दों में लिखित पद्यात्मक ग्रन्थ है। पद्य में होने से उसे पढ़ने और स्मरण रखने में अनुकूलता होती है। इस ग्रन्थ की लोकप्रियता एवं उसके महत्त्व का अनुमान इस बात से हो सकता है कि अनेक विदेशी भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। लीलावती में भास्कराचार्य ने दश गुणोत्तर प्रणाली का प्रयोग किया है। उसमें गणित की सामान्य विधियों को मनोरंजक रूप में समझाया गया है। जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्गमूल आदि के अलावा इस ग्रन्थ में अनेक उपयोगी प्रश्नों का भी समाधान किया गया है।

आपके लिखे हुए दो ग्रन्थ विशेष प्रसिद्ध हुए। प्रथम है ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ तथा द्वितीय है ‘सूर्यसिद्धान्त’ सिद्धान्त शिरोमणि चार विभागों में है। ये चार विभाग 1. लीलावती, 2. बीजगणित, 3. गणिताध्याय, 4. गोलाध्याय नाम से जाने जाते हैं।

भास्कराचार्य गणितज्ञ होने के साथ-साथ एक महान् ज्योतिषी भी थे। हम जानते हैं कि उनके समय में दूरबीन की खोज नहीं हुई थी। पुनरपि ग्रह, नक्षत्रों आदि का अध्ययन, उनकी स्थिति का परिज्ञान उन्होनें कैसे किया होगा यह आश्चर्य का विषय है। तारामंडल के अभ्यास में आप भोजन या विश्राम को भी भूल जाते थे।

भास्कराचार्य एक महान् खगोलशाóी भी थे। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में आपका प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘कर्ण कुतूहल’ है। इस ग्रन्थ में ज्यातिष् सम्बन्ध्ाी सारणियों और गिनतियों में किए हुए कार्यों का वर्णन है। गणित और ज्योतिष् के क्षेत्र में नवीन शोध्ा करने का कठिन कार्य भास्कराचार्य ने करते हुए ऐसे महत्त्वपूर्ध ग्रन्थों की रचना की जो बाद में विश्वप्रसिद्ध हुए।

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