दीनानाथ की दया से आए दयानन्द देव।
दीन-हीन देश के सुवर्ण के सुमेर थे।।
वेदधर्म व्याप्त सेवा धर्म में समाप्त हुए।
आप्त हु के आप्त वे गैरों के लिए गैर थे।।
सत्य के सुमित्र आप असत्य के शत्रु आप।
पाप ताप कपट कुटिलता के कहर थे।।
दिव्य दृग-तेज मेघ-गर्जना सा सिंह नाद।
वीर दयानन्द भूमि भारत के शेर थे।।४०।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई