ब्रह्म देवताओं के तेज का नाम भर्ग है। देवताओं को तेज सविता सर्वव्यापक से मिलता है। सविता सर्वव्यापक और देवताओं के मध्य सीधा सम्बन्ध है। देवताओं के पश्चात् धी, धियः, मन, इन्द्रियों की व्यवस्था है। सविता एक है, देव ब्रह्म पांच हैं। देव ब्रह्मित धी एकी है। धियः पंचात्मक पंचैकी है। मन शिवी (शिवमय) है। इन्द्रियां पंच हैं पंचेन्द्रियां पंच जनों के माध्यम से उत्-योग कर उद्योग सफल करती हैं। सविता सच्चिदानन्द- सत्, सच्चित्, चित्, चिदानन्द, आनन्द के पंच द्वारा जगत् जीव की व्यवस्था का प्रसवन, धारण, पालन, संहार, कर रहा है। यह सब भर्ग प्रबन्धन की व्यवस्था है जो ब्रह्मित है।
पृथ्वी, आप, वरुण, तेज, आकाश क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म होते देव हैं जो ब्रह्म से भर्ग धारण करते हैं। इनसे गन्ध्ा, रस, रूप, स्पर्श, शब्द पांच सूक्ष्म भूत होते हैं। इन सूक्ष्म भूतों का आधार पांच इन्द्रियां हैंजो पिंड में नासिका, रसना, चक्षु, त्वक्, श्रोत्र रूप में हैं। ब्रह्म सर्वव्यापक का भर्ग, धी, धियः मन के अर्च स्वरूप पर देव व्यवस्था के आकाश ब्रह्म, वरुण ब्रह्म, तेज ब्रह्म, आप ब्रह्म, धरा ब्रह्म रूपों में जो वर्च रूप है वह शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध स्वरूपों में अनुगुणित तैंतीस गुणित अनुगुणित पांच प्रकार से फैला है। यह ओज रूपी है। यह ओज सुपात्रता अनुरूप स्वस्थता के अनुपात में कान, त्वक्, चक्षु, रसना, नासिका द्वारा प्राप्त होता है और उसी अनुपात में कार्यों का मानव जीवन में प्रसवन, धारण, पालन, समापन, करता है। हर पंचजन समूह भी इसी स्वस्थता, सुपात्रता के आधार पर सफलता अर्जित करता है। ब्रह्म भर्ग के अवतरण और उसके पश्चात् उद्योग में उपयोग करना ही भर्ग प्रबन्धन है।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)