ब्रह्मन् स्वराष्ट्र में हों…

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ब्रह्मन् स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी।

क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी।। 1।।

होवें दुधारु गौएं, पशु अश्व अशुवाही।

आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही।। 2।।

बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें।

इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें।। 3।।

फलफूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी।

हो योगक्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी।। 4।।

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