बिन आत्मज्ञान के दुनियां में, इन्सान भटकते देखे हैं।
आम बशर की तो बात ही क्या, सुल्तान भटकते देखे हैं।। टेक।।
जो सबरों सकूं की दौलत है, मिलती है आत्मज्ञानी को।
तसकीन के बिन तो देखा है, धनवान भटकते देखे हैं।। 1।।
सब ज्ञान तो उसने सीख लिया, पर आत्मज्ञान ही सीखा ना।
यह कारण है कि पंडित भी, अनजान भटकते देखे हैं।। 2।।
जो भटकाते हैं दुनियां को, वे आप भटकते देखे हैं।
गुणवान् भटकते देखे हैं, साइन्सदान भटकते देखे हैं।। 3।।
जिस महफिल में भी देखा है, हरेक को भटका पाया है।
हर मेम्बर की तो बात ही क्या, प्रधान भटकते देखे हैं।। 4।।
जो आत्मज्ञानी होता है, बलवान् है सारी दुनियां में।
वैसे तो पथिक इस दुनियां में, बलवान् भटकते देखे हैं।। 5।।
अज्ञान के कारण देहधारी, मानव को ही ईश्वर मान लिया।
अब जाने-माने लोगों के, भगवान भटकते देखे हैं।। 6।।