आर्य जाति के जहाज महाऋषिराज आज।
बावनी समाप्त हुई मेरे मन-भावनी।।
महर्षि के भक्तवर आर्यवीर वल्लभ की।
प्रेममयी प्रेरणा सी सदा सुख पावनी।।
कवि अनुभवी न पण्डित न प्रवीण यह।
अंतर की अंजलि श्रद्धांजलि सोहावनी।।
काराणी की वाणी कहां सागर का पानी कहां।
सिंधु दयानन्द एक बिन्दु मेरी बावनी।।५२।।
जब लग सूरज सोम है, जब लग आर्य समाज।
तबलग अविचल आप हैं दयानन्द गुरुराज।।
दीपत दिन दीपावलि दो हजार दश साल।
पूर्ण प्रकट भई बावनी बावन दीपक माल।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई