दया-बल, मया-बल विमल विनोद बल।
वेद शास्त्र बल का सबल शस्त्र बल था।।
विद्या बल वाणी बल युक्ति प्रयुक्ति का बल।
पूर्ण प्रेम बल का अमल परिमल था।।
तन बल, मन बल, बाहु बल बुद्धि बल।
ब्रह्मचर्य बल पे बलिष्ट आत्मबल था।।
असत अरिदल के बादल बिहारिबे को।
दयानन्द तेरा बल-दल ये प्रबल था।।४६।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई