“प्रबन्धन गुरु तथा उनकी सीख की आत्मा”

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हर काल में वृहत कार्य किये जाते रहे हैं । कार्य करने का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मनुष्य ही रहा है और हमेशा मनुष्य ही रहेगा । मनुष्य के सामने अन्य सारे संसाधन द्वितीयक है । आधुनिक प्रबंधन गुरुओं की सीख का आधार वाहय संसाधन है । प्राचीन गुरुओं की सीख शाश्वत है – आधुनिक गुरुओं की परिवर्तनशील प्रबंधन गुरुओं की सीखों की तुलना महत्वपूर्ण है ।

प्राचीन प्रबंधन गुरु

1) जैमिनी, व्यास, कपिल, कणाद, पतंजलि, गौतम
2) भारतीय संस्कृति आधारित
3) सुत्रात्मक पूर्णतः
4) ब्रह्म समन्वित
5) पूर्ण क्रम बद्ध, श्रंखला बद्ध
6) मानव, समाज, लक्ष्य समन्वय
7) सूत्र व्याख्याकार दूसरे
8) पवित्र आचार व्यवहा से उपज
9) आधार ज्ञान वेद
10) पूर्ण से अंश दृष्टि
11) शास्त्र अछिद्रित मान्यता धारित
12) जीवन उतारने में – आदर्श व्यवहार एक विशेष
13) ब्रह्म मानव, समाज, प्रकृति-मशीन
14) बेद, ब्रह्मण उपनिषद, ज्ञान समन्वित
15) उर्ध्व रोग समन्वित
16) ऋत श्रृत समन्वित – शाश्वत –
17) शत प्रतिशत क्रमबद्ध वैज्ञानिक विधि आधारित

वर्तमान प्रबंधन गुरु

1) फैजन योग, अशिकरवा, गोमिची, तानुची, शिमेयो शिंगो, क्रास बाई, डेम्रिग, जुरान, पीटर ड्रकर, जान अडेयर
2) पाश्चात्य संस्कृति आधारित
3) विवरणात्मक – इने गिने सूत्र
4) मशीन महीं महीं मानव समन्वित
5) अर्धा क्रम श्रंखला बद्ध
6) मानव उद्योग समन्वय
7) सूत्र व्याख्याकार स्वयं
8) सामान्य आचार व्यवहार उपज
9) आधार ज्ञान उद्योग
10) अंश से अंश दृष्टि
11) व्यवहार छिद्रित मान्यता धारित?
12) जीवन में उतारने में व्यवहार – व्यवहार चौहरा विक्षेप
13) समाज, मानव, मशीन क्रम बद्धता
14) तितर बितर पूर्व ज्ञानाधारित
15) जग योग समन्वित
16) अर्ध ऋत नियम समन्वित प्राकृतिक शाश्वत नैति नियमाधारित
17) वैज्ञानिक विधि का यदा कदा प्रयोग

कपिल
1) सांख्य
2) चेतन – पुरुषः
3) अचेतन
4) त्रिगुण
5) पांच तन्मात्राएं
6) ग्यारह इन्द्रियां
7) अविद्या

डब्लु एडवर्ड डेमिंग
1) सांख्यिकी प्रक्रिया तालिका
2) आयोजन करें
3) जांच करें
4) क्रियात्मक
5) कार्य के विशिष्ट कारण
6) कार्य के सामान्य कारण

टिप्पणी :

कपिल : 1) क्रमबद्ध निश्चित , 2) उच्च से निम्न क्रम – पूर्ण तत्व मीमांसा , 3)व्यवहारिक उपयोग – पुरुष महत्तत्व अर्थ – बुद्धि – मन – इन्द्रिय – कार्य ।

डब्लु एडवर्ड डेमिंग : 1) क्रमबद्ध सामान्य, 2) अपूर्ण वैज्ञानिक विधि क्रम । (पूर्ण वैज्ञानिक विधि = (1) प्राकल्पना, (2) अवलोकन (3) तथ्य सारिणीकरण, (4) निष्कर्ष, (5) प्रस्थान)

कणाद
1)वैशेषिक – विशिष्टतावाद
2) द्रव्य नौ
3) गुण चोबींस
4) कर्म पांच
5) सामान्य
6) विशेष
7) समवाय

आर्मड व्ही फजेनवोंम
1) गुणवता मानक तय करें
2) मानकों की कार्य अनुरूपता
3) मानक हृास पर कार्य
4) उन्नयन योजना

टिप्पणी :

कणाद : 1) संपूर्ण दृष्टि कोण , 2) गहन भी स्थूल भी , 3) सर्व से अंश।

आर्मड व्ही फजेनवोंम : 1) सीमित क्षेत्र, 2) स्थूल, 3) अंश से सर्व।

व्यास
1) ज्ञान
2) उपासना – लक्ष्य निकट चिन्तन
3) समन्वय अध्याय
4) विरोध – अध्याय
5) साधन अध्याय
6) फल निर्णय
अ) हेय – छोड़ने योग्य
ब) हेय हेतु – छोड़ने का कारण
स) हान – प्राप्ति योग्य
द) हानो पाय – हान का कारण

जोसेफ एम जुरान
1) लक्ष्य निर्धारण
2) लक्ष्य हेतु आयोजन
3) संसाधन विकास
4) लक्ष्य का गुणात्मक अनुवाद
5) अपक्षय
6) माल देने में सुधार
7) स्व संतोष
8) ग्राहक संतुष्टि
9) लाभ

टिप्पणी :

व्यास : 1) उच्च धरातलीय पर व्यवहार पर भी उपयुक्त , 2) अ) हेय – अपक्षय ब) धन – लाभ, 3) समन्वय संकल्पना।

जोसेफ एम जुरान : 1) सुव्यवस्थित, 2) उपयोगी, 3) स्व एवं ग्राहक संतोष संकल्पना।

जैमिनी
1) मीमांसा
2) नित्य कर्म – दैनिक कार्य योजना
3) नैमित्तिक
4) काम्य

आर्मंड व्ही फेजेन वोम
1) गुणवत्ता मानक तय करें
2) मानकों की कार्य अनुरूपता
3) मानक हृास पर कार्य
4) उन्नयन योजना

टिप्पणी :

जैमिनी : 1) जीवन आधारित उद्योगों में भी लागू , 2) प्रायाश्चित = मान हृास पर कार्य , 3) नित्य कर्म = आधार कार्य, 4) नैयित्रिक कार्य = अन्य कार्य

आर्मंड व्ही फेजेन वोम : 1) उद्योग हेतु, 2) मानक हृास पर कार्य = प्रायाश्चित, 3) मानक हृास पर कार्य = प्रायाश्चित।

पतंजलि
1) योग – चितवृति निरोध
2) यम – विचार परम गुण
3) नियम – व्यवहार परक गुण
4) आसन – स्थैर्य – उत्तम इन्द्रियों का
5)प्राणायाम
6) प्रत्याहार
7) धारणा
8) ध्यान
9) समाधि
10) प्रमाण

शिमैयो शिंगो
1) त्रुटि शून्य (पोको – वोके)
2) त्रुटि निराकरण अविलम्ब

गोनिची तागुचि
3) व्यवस्था अभिकल्पन
4) परिसीजा अभिकल्पन
5) त्रुटि दहलीज सीमा परिकल्पन

कोरूं अशिकावा
6) अस्सी बीस सिद्धांत
7) समानांतर संप्रेषण
8) उर्ध्व संप्रेषण
9) मछली चित्र

गौतम
1) न्याय
2) न्याय विशेष
अ) चौबीस प्रकार की जाति
ब) छब्बीस प्रकार की निग्रह स्थान
3) जल्प
4) वितंडा

वैज्ञानिक विधि
1) प्रतिज्ञा
2) तथ्य से अवलोकन
3) सारिणीकरण
4) निष्कर्ष
5) प्रस्थान

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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