आर्ष क्रम से व्याकरण पठन-पाठन के सौकर्य हेतु ऋषि पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी सूत्रपाठ को अनुवृत्ति अधिकार सहित इस पुस्तक के रूप में टंकित करने का सौभाग्य मुझे ईश्वर की महती कृपा से आज से लगभग दस वर्षों पूर्व आर्य जगत् के अनेकों गुरुकुलों के आचार्यों के निर्माता लब्धप्रतिष्ठ स्व. आचार्य बलदेव जी नैष्ठिक के चरणकमलों में रोहतक में बैठ अष्टाध्यायी प्रथमावृत्ति प्रारम्भ करते हुए प्राप्त हुआ था। आप आचार्यश्री से ही आप ही के द्वारा लिखित अष्टाध्यायी प्रवेश नामक सुप्रसिद्ध पुस्तक का द्वितीय संस्करण के संगणकीय टंकन एवं तीन वर्ष बाद इस का मुद्रण-प्रकाशन का भी सौभाग्य मेरा रहा है। विचार टी.वी. के प्रारम्भिक दिनों में मित्रों के आग्रह पर अध्ययन स्थगित कर प्रचार कार्यों में संलग्न हो गया था.. आज इतने वर्षों बाद अध्ययन-अध्यापन का सौभाग्य आचार्य आनन्दप्रकाश जी की सर्वश्रेष्ठ शिष्या श्रद्धेया आचार्या नीरजा जी से गोविन्द शान्ति बिंजराजका वटुक विकास केन्द्र अलियाबाद में संचालित पाणिनीया पाठशाला में पुनः प्राप्त हो गया है। इस अवसर पर मेरे साथ पठनार्थी वटुकों, ब्रह्मचारियों एवं आर्ष कन्या गुरुकुल की बहनों तथा विश्वभर में अष्टाध्यायी क्रम से पठनार्थियों के लिए मुद्रित कराई जा रही हैं.. मुखपृष्ठ चित्र हेतु बहन सुश्री माधुरी जी तथा आवरण के संगणकीय चित्रण हेतु श्री राधावल्लभ जी का धन्यवाद..!! इनका मुद्रण व्यय दिल्ली के श्री जितेन्द्र जी भाटिया ने सहर्ष वहन किया है एतदर्थ उनका हार्दिक आभार.. उनके इस योगदान से अन्य गुरुकुलों में आर्ष क्रम से पढ़नेवाले व्याकरण अध्येताओं को भी यह पुस्तक निःशुल्क उपलब्ध्ा कराई जा सकेगी। आशा है इस प्रयास का स्वागत होगा…