संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (२५) षष्ठी विभक्ति ४
(कृत् संज्ञक प्रत्यय के प्रयोग में कर्त्ता व कर्म में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है जब वाक्य में कर्त्ता व कर्म कारक दोनों का एक साथ प्रयोग किया गया हो तब कर्म में षष्ठी विभक्ति होगी तथा कर्त्ता में तृतीया अथवा षष्ठी विभक्ति होगी।
यह नियम शतृ, शानच्, क्वसु, कानच्, कि, किन्, उ, इष्णुच्, उकञ्, क्वा, ल्यप्, तुमुन् आदि अव्यय तथा क्त, क्तवतु, खल्, युच्, चानच्, शानन् आदि कृत् प्रत्ययों में नहीं लगता।
भाव व अधिकरण कारक में आए हुए क्त प्रत्यय के कर्त्ता कारक में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।)
धनं याचति = धन मांगता है।
धनस्य याचको मा भुवम् = मैं धन का मांगनेवाला न होऊं।
दोषान् दहति = दोषों को जलाता है।
दोषणां दाहकः स्वर्गं लोकं यान्ति = दोषों को जलानेवाला स्वर्ग को प्राप्त करता है।
राष्ट्रं नयति = राष्ट्र को ले जाते हैं।
राष्ट्रस्य नायकाः धार्मिकाः विद्वांसश्च भवेयुः = राष्ट्र के नायक धार्मिक तथा विद्वान होने चाहिएं।
विद्यां निन्दन्ति = विद्या की निन्दा करे हैं।
विद्यायाः निन्दकाः मूर्खा उच्यन्ते = विद्या के निन्दक मूर्ख कहाते हैं।
इतिहासं लिखन्ति = इतिहास को लिखते हैं।
इतिहासस्य लेखकाः प्रामाणिकाः भवेयुः = इतिहास लेखक प्रामाणिक होने चाहिएं।
प्रजां सेवते = प्रजा की सेवा करता है।
प्रजायाः सेवकः प्रजावत्सलो भवेत् = प्रजा का सेवक प्रजावत्सल होना चाहिए।
परलोकं पश्यति = परलोक को देखता है।
परलोकस्य दर्शकः कदापि पापाचारं न करोति = परलोक को देखनेवाला कभी भी पापाचरण नहीं करता है।
सर्वान् पुनाति = सब को पवित्र करता है।
धर्मः सर्वेषां पावकोऽस्ति = धर्म सभी को पवित्र करता है।
सर्वान् मोदयन्ति = सब को प्रसन्न करते हैं।
मोदकाः सर्वेषां मोदकाः भवन्ति = लड्डू सभी को प्रसन्न करनेवाले होते हैं।
वेदं पठति पाठयति च शृणोति श्रावयति च = वेद को पढ़ता पढ़ाता और सुनता सुनाता है।
वेदस्य पाठकः श्रावकश्च भूयात् = वेद को पढ़ने-पढ़ानेवाला और सुनने-सुनानेवाला होवे।
छात्रान् अध्यापयति = विद्यार्थियों को पढ़ाता है।
छात्राणां अध्यापकः संयमी स्यात् = छात्रों को पढ़ानेवाला अध्यापक संयमी होना चाहिए।
सर्वं पश्यति = सब को देखता है।
सर्वस्य द्रष्टा ईश्वरोऽस्ति = सब को देखनेवाला ईश्वर है।
सृष्टिं करोति, धरति, हरति च = सृष्टि को बनाता, धारण करता और विनाश करता है।
सृष्टेः कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता चेश्वरो वर्त्तते = सृष्टि का कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता ईश्वर है।
विषयान् भुङ्क्ते = विषयों को भोगता है।
विषयाणां भोक्ता दुःखमेव लभते = विषयों को भोगनेवाला दुःख ही पाता है।
शास्त्राणि शृणोति = शास्त्रों को सुनता है।
शास्त्राणां श्रोता कामं शनैः शनैः किन्तु वर्धते एव = शास्त्रों का (आध्यात्मिक) श्रवण करनेवाला धीरे धीरे ही सही बढ़ता ही है।
शास्त्रं जानाति = शास्त्रों को जानता है।
शास्त्राणां ज्ञाता आचरणेन ज्ञायते = शास्त्रों का ज्ञाता है या नहीं यह आचरण से पता चलता है।
वेदान् वेत्ति = वेदों को जानता है।
वेदानां वेत्ता वेदवेत्ता कथ्यते = वेदों का ज्ञाता वेदवेत्ता कहाता है।
दुग्धं दोग्धि = दूध दुहता है।
दुग्धस्य दोग्धा प्रतिदिनं शतं सेटकं दुग्धं दोग्धि = ग्वाला प्रतिदिन सौ लीटर दूध दुहता है।
जगतः करोति = विविध जगत को करता है।
जगतां यदि नो कर्त्ता कुलालेन विना घटः।
चित्रकारं विना चित्रं स्वत एव भवेत्तथा।। = यदि कर्त्ता के बिना स्वयं जगत बन गया है ऐसा मान लिया जाए तो कुम्हार के बिना घड़ा और चित्रकार के बिना चित्र भी स्वयमेव बन जाना चाहिए।
ज्ञानं ददाति, धनं च = ज्ञान देता है और धन भी।
ज्ञानस्य दाता धनस्य दातुरतिरिच्यते = ज्ञानदाता धनदाता से श्रेष्ठ है।
प्रश्नं पृच्छति = प्रश्न पूछता है।
प्रश्नस्य प्रष्टारं शिक्षकः उत्तरति = प्रश्नकर्त्ता को शिक्षक उत्तर दे रहा है।
जीवनं गच्छति = जीवन बीत रहा है।
जीवनस्य गतिं दृष्ट्वा मनुष्यः पुनर्जन्म निश्चेतुमर्हति = जीवन की गति देखकर व्यक्ति पुनर्जन्म का निश्चय कर सकता है।
धनं गच्छति = धन खर्च हो रहा है।
धनस्य तिस्रो गतयः सन्ति, भोगो दानं नाशश्च = धन की तीन गतियां हैं, भोग दान और नाश।
सूर्यो दीप्यति = सूर्य चमक रहा है।
सूर्यस्य दीप्त्या दीपकस्य प्रकाशो न दृश्यते = सूर्यप्रकाश में दीपक का प्रकाश नहीं दीखता है।
मनः संयमति = मन को संयमित करता है।
मनसः संयतिः उन्नत्याय कल्पते = मन का संयम उन्नति का कारण बनता है।
अहं प्रणमामी = मैं प्रणाम करता/करती हूं।
गुरवे मम प्रणतिं निवेदयतु = गुरुजी को मेरा नमस्कार कहना।
धनं प्राप्नोति = धन को प्राप्त करता है।
धर्मरहिता धनस्य प्राप्तिरवनत्याय कल्पते = धर्मरहित धन की प्राप्ति अवनति का कारण बनती है।
वानरः प्लवते = बन्दर कूद रहा है।
वानरस्य प्लुतिं दृष्ट्वा बालो मोदते = बन्दर की उछलकूद देखकर बच्चा प्रसन्न हो रहा है।
मद्यं पिबति = शराब पीता है।
अद्यत्वे मद्यस्य पीतिः आढ्यानां प्रतीकं वर्तते = आजकल मद्यपान धनिक होने की निशानी है।
भवान् शेते = आप सो रहे हैं।
अधुना भवतः शायिका वर्तते = अब आपकी सोने की बारी है।
त्वमग्रे ग्रसते = तू पहले खा रहा है।
त्वं खाद, तवाऽग्रग्रासिकाऽस्ति = तू खाले, तेरी पहले भोजन करने की बारी है।
पयः पिबति = दूध पीता है।
अधुना कस्य पयसः पायिका वर्तते ? = अब किसकी दूध पीने की बारी है ?
रामः भोजनं वितरति = राम भोजन बांट रहा है।
रामस्य भोजनस्य वितरिकाऽस्ति, अतो वितरति = राम की भोजन परोसने की बारी है इसलिए परोस रहा है।
स्वाध्यायं करोति = स्वाध्याय करता है।
मोहनस्याऽद्य स्वाध्यायस्य कारिकाऽऽसीत्, पुनरपि स यज्ञेऽनुपस्थित आसीत् = आज मोहन की स्वाध्याय करने की बारी थी फिर भी वह यज्ञ में अनुपस्थित था।
भोजनं पचति = भोजन पकाती है।
का भोजनं पचति ? अद्य कस्याः भोजनस्य पाचिकाऽस्ति ? = कौन भोजन पका रही है ? आज किसकी भोजन पकाने की बारी है ?
गां दोग्धी = गाय दुहती है।
सा गवां दोहिका सम्यक् करोति = वह अपनी गोदोहन बारी अच्छी तरह करती है।
अहम् उपविशामि = मैं बैठता/बैठती हूं।
मम उपवेशिकाऽस्ति, भवान तिष्ठतु = मेरी बैठने की बारी है, आप खड़े रहिए।
त्वं कार्यं करोषि = तू काम करता/करती है।
तव कार्यस्य चिकीर्षाऽस्ति, त्वं कुरु = तेरी काम करने की बारी है, तू कर।
त्वं खादसि = तू खाता/खाती है।
त्वमधुना कथं खादसि, किं तव चिखादिषाऽस्ति ? = तू अभी क्यों खा रहा/रही है, क्या तेरी अभी खाने की बारी है ?
त्वं वदसि = तू बोलता/बोलती है।
तव विवदिषा समाप्ता, अधुनाऽहं वक्ष्यामि = तेरी बोलने की बारी समाप्त हुई, अब मैं बोलूंगा/बोलूंगी।
अहं पुस्तकं पठामि = मैं पुस्तक पढ़ता/पढ़ती हूं।
मह्यं पुस्तकं ददातु, अधुना मम पुस्तकस्य पाठिकाऽस्ति = मुझे पुस्तक देदो, अभी मेरी पुस्तक पढ़ने की बारी है।
इक्षवो भुङ्क्ते = गन्ने खा रहा/रही है।
इक्षूणां भक्षिकाम् अर्हति भवान् = आप गन्ने खा सकते/सकती हैं।
बालः दुग्धं पिबति = बच्चा दूध पी रहा है।
बालः दुग्धस्य पायिकाम् अर्हति = बच्चा दूध पी सकता है।
भाण्डानि मार्जयति वस्त्राणि प्रक्षालयति = बरतन साफ कर रही है और कपड़े धो रही है।
जलाशये जलमधुना पूरितम्, भवति भाण्डानां मार्जिकां वस्त्राणां च प्रक्षालिकाम् अर्हत्यधुना = टंकी में पानी भर दिया है, अब आप बरतन मांज सकती हैं और कपड़े धो सकती हैं।
शाटिकां धारयति = साड़ी पहन रही है।
कञ्चुकं स्यूतम्, शाटिकायाः धारिकामर्हति भवती = ब्लाउज सिल दिया है, आप साड़ी पहन सकती हैं।
भ्रातृजाया हसति = भाभी हंस रही है।
भ्रातृजायायाः हसनं मह्यं रोचते = भाभी की हंसी मुझे अच्छी लगती है।
बालो दुग्धं पिबति = बच्चा दूध पी रहा है।
बालेन बालस्य वा दुग्धस्य पानं बहु शोभनं वर्तते = बच्चा बहुत अच्छी तरह से दूध पी रहा है।
ओदनं पचति = चावल पका रही है।
ओदनस्य पचनं बहु सरलमस्ति = चावल पकाना बहुत सरल है।
माधुरी गच्छति = माधुरी जा रही है।
माधुर्याः गमनं कुटिलं प्रतीयते = माधुरी का जाना कुटिल प्रतीत हो रहा है।
कैकेयी वरं याचति = कैकेयी वर मांग रही है।
रामो वनं गच्छति = राम वन जा रहा है।
कैकेय्याः कैकेय्या वा वरस्य याचनं रामस्य वनगमनस्य कारणमभूत् = कैकेयी का वर मांगना राम के वनगमन का कारण बना।
आतङ्कवादिनो निगृह्णति = आतंकवादियों को पकड़ता है।
आतङ्कवादिनां निग्रहणं कृत्वा कारागारेऽक्षिपत् । = आतंकवादियों को पकडकर जेल में डाल दिया।
दुष्टाः प्रजाः पीडयन्ति = दुष्ट प्रजा को पीड़ित कर रहे हैं।
दुष्टैः प्रजायाः पीडनं क्रियते = दुष्टों के द्वारा प्रजा को पीड़ित किया जा रहा है।
सीतां हरति = सीता का अपहरण करता है।
सीतायाः हरणेन रावणो मृतः = सीता के अपहरण के कारण रावण मारा गया।
एतेऽत्राऽसते = ये लोग यहां बैठ रहे हैं।
इदमेषाम् आसितमस्ति = ये इनका बैठने का स्थान है।
एतेऽत्र शेरते = ये यहां सोते हैं।
इदमेतेषां शयितमस्ति = ये इनका शयनकक्ष है।
एतेऽत्र भुञ्जते अश्नन्ति खादन्ति भक्षन्ति वा = ये यहां पर भोजन करते हैं।
इदमेतेषां भुक्तम् अशितं खादितं भक्षितं वाऽस्ति = ये इनकी भोजनशाला है।
एतेऽत्र फलरसं पिबन्ति = ये यहां फलों का रस पीते हैं।
इदमेतेषां फलरसस्य पीतमस्ति = यह इनके फलों का रस पीने का स्थान है।
रामोऽत्र पठति = राम यहां पढ़ता है।
इदं रामस्य पठितमस्ति = यह राम का अध्ययनकक्ष है।
बालकाः अत्र क्रीडन्ति = बच्चे यहां खेलते हैं।
इदं बालकानां क्रीडनमस्ति = यह बच्चों के खेलने का स्थान है।
अहम् उपविशामि = मैं बैठता/बैठती हूं।
मम उपविष्टे केनापि अद्य जलं क्षिप्तम् = मेरे बैठने के स्थान पर किसी ने आज पानी फैला दिया है।
जनाः यान्ति = लोग चलते हैं।
जनानां याते प्रावृषि यवसं जातम् = लोगों के चलने के स्थान पर बारिश में घास उग आई।
मूषकाः भ्रमन्ति = चूहे घूम रहे हैं।
मूषकाणां भ्रमितेऽद्य मार्जारी अवेक्षणं करोति = चूहों के घूमने की जगह पर आज बिल्ली पहरा दे रही है।
उलूकाः वसन्ति = उल्लू रहते हैं।
उलूकानां उषिते काकाः परिभ्रमन्ति = उल्लुओं के निवासस्थान पर कौए मंडरा रहे हैं।
प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’
अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)