संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ (१) प्रथमा विभक्ति
कर्त्तृवाच्य में कर्त्ता (=क्रिया को करनेवाला) कारक में प्रथमा विभक्ति होती है यथा-
विक्रमः पठति = विक्रम पढ़ता है/ पढ़ रहा है।
माला पचति = माला पकाती है/ पका रही है।
उपाध्यायः आगच्छति = उपाध्याय आ रहा है/ रहे हैं।
कुक्कुरः शेते = कुत्ता सो रहा है।
मार्जारः पिबति = बिल्ली पी रही है।
पक्षिणः उड्डयन्ति = पक्षी उड़ रहे हैं।
अहं गच्छामि = मैं जा रहा हूं/ जा रही हूं।
आवां यजावः = हम दोनों यज्ञ कर रहे हैं/ कर रही हैं।
वयं उपविशामः = हम सब बैठ रहे हैं/ रही हैं।
गोपालः दोग्धि = गोपाल दुह रहा है।
शाकविक्रेता विक्रीणाति = सब्जी बेचनेवाला बेच रहा है।
ग्राहकः क्रीणाति = ग्राहक खरीद रहा है।
भक्तः प्रार्थयति = भक्त प्रार्थना कर रहा है।
त्वं सत्यापयसि = तू सत्य कह रहा है/ रही है।
युवां यमयतः = तुम दोनों यम का पालन कर रहे हो/ रही हो।
यूयं नियमतः = तुम सब नियम का पालन कर रहे हो/ रही हो।
सः शब्दायते = वह शोर कर रहा है।
तौ कलहायेते = वे दोनों लड़ रहे हैं।
ते करुणायन्ते = वे सब करुणा की अनुभूति कर रहे हैं।
कुम्भकारः घटयति = कुम्हार घड़ा बना रहा है।
तन्तुवायः वस्त्रयति = जुलाहा कपड़ा बुन रहा है।
चित्रकारः चित्रयति = चित्रकार चित्र बना रहा है।
भर्जकः भर्जयति = बड़भुजा (भूननेवाला) भून रहा है।
सूचिकः सिव्यति = दरजी सिलाई कर रहा है।
चर्मकारः निर्मापयति = चमार बना रहा है।
माता सम्भाण्डयते = माता बर्तनों को ठीक रख रही है।
भगिन्यौ वस्त्रस्त्रयतः = दो बहनें कपड़े धो रही हैं।
गृहस्थः तपस्यति = गृहस्थ जपस्या कर रहा है।
बालः सुखायते = बच्चा सुख की अनुभूति कर रहा है।
वाष्पस्थाली वाष्पायते = कुकर में से भाप निकल रही है।
रेलयानं ध्रूम्रायते = रेलगाड़ी से धूंआ निकल रहा है।
बालः उत्सुकायते = बालक उत्सुकता दिखा रहा है/ उत्सुक है।
नेत्रे लोहितायेते = दोनों आंखें लाल हो रही हैं।
मूर्खः पण्डितायते = मूर्ख पडित जैसा आचरण/व्यवहार कर रहा है।
पाचिका पिपक्षति = भोजन पकानेवाली पकाना चाहती है।
तृषितः पिपासति = प्यासा पीना चाहता है।
विद्यार्थी पिपठिषति = विद्यार्र्थी पढ़ना चाहता है।
जिज्ञासु जिज्ञासति = जिज्ञासु जानना चाहता है।
शिष्या पिपृच्छिषति = शिष्या पूछना चाहती है।
रोगी मुमूर्षति = रोगी मरना चाहता है।
द्रष्टा दिदृक्षते = देखनेवाला देखना चाहता है।
बाला रुरुदिशति = बच्ची रोना चाहती है/ रोनेवाली है।
जेता जिगीषति = जीतनेवाला जीतना चाहता है।
उपासकः उपासिषते = भक्त उपासना करना चाहता है।
श्रान्तः सुषुप्सति = थका हुआ व्यक्ति सोना चाहता है।
स्वसा पापच्यते = बहन बार-बार पकाती है/ खूब पकाती है।
धावकः दाधाव्यते = दौड़नेवाला खूब दौड़ता है/बार-बार दौड़ता है।
अग्निः जाज्वल्यति = अग्नि खूब तप रही है।
सूर्यः दोधूप्यते = सूर्य खूब तप रहा है।
सेविका सिषेव्यते = सिलाई करनेवाली खूब सिलती है/ बार-बार सिलती है।
रजकः पाप्रक्षाल्यते = धोबी बार-बार धोता है/खूब धोता है।
वाचालः वावद्यते = जल्पी (बकवादी) बहुत बोलता है।
चलचित्रदर्शी दरीदृश्यते = सिनेमा देखने का शौकीन खूब/ बार-बार देखता है।
कृषकः करीकृष्यते = किसान बार-बार हल जोतता है।
प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’
अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)