सोती आर्यजाति को झंझोड के जगानेवाले।
प्रतिमा के पाषाण-पूजा से मुख मोड़ा है।।
भूत-प्रेत तन्त्र गण्डा-ताविजों को तोड़ा तूने।
जंत्र-मन्त्र ज्योतिष का भंडा तूने फोडा है।।
देखा है पाखण्ड वहां दौड़े हैं अचूक आप।
पोल-ढोल छुपे छल-छद्म को न छोड़ा है।।
लाखों देवी-देवता के फंद को छुड़ाय एक।
निराकार ईश्वर से जीवन को जोड़ा है।।२७।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई