ब्रह्मचर्य पुष्ट तेरे देह का अदम्य तेज।
वीर आर्य धर्म का प्रचण्ड मार्तण्ड तू।।
काम क्रोध लोभ मोह मत्सर में मन्द अति।
सारे आर्यावर्त के उत्कर्ष में अमंद तू।।
प्रतिभा प्रभाववन्त शान्त दाना सौम्य सन्त।
काराणी कहत ऋतु शरद को चंद तू।।
दया को आनन्द तू कि आनन्द की दया तू कि।
दोन दया आनन्द को एक दयानन्द तू।।२२।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई