सूरज बन जिसने दूर किया पापों का घोर अन्धेरा।
वह देव दयानन्द मेरा, वह देव दयानन्द मेरा।। टेक।।
गुरुवर को जो वचन दिया प्राणों के साथ निभाया।
परोपकार ही में जिसने अपना सर्वस्व लुटाया।
तज भूख-प्यास सर्दी-गर्मी नहीं देखा सांझ सवेरा।। 1।।
जहां छुआछूत और भेदभाव के लाखों थे मतवाले।
जो भोलीभाली जनता को डसते थे विषधर काले।
वेद की वीणा सुना सभी को कर गया मस्त सपेरा।। 2।।
लाख करोड़ों दुःखी दिलों का दर्द था जिसके दिल में।
ईंटें खाई जहर पिया हंसता ही रहा मुश्किल में।
फिर सत्य धर्म ने जिसकी बदौलत डाला फिर से डेरा।। 3।।
हर विषय में देता था स्वामी बड़ी-बड़ी तफसीलें।
सिन्धु से गहरी नभ से ऊँची गिरी से सुदृढ़ दलीलें।
था जिसने दुनियां में मानवता का रंग बिखेरा।। 4।।