तेरे नाम का सुमिरन करके मेरे मन में सुख भर आया।
तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया।। टेक।।
दुनियां की ठोकर खाकर, जब कभी हुआ बेसहारा।
ना पाकर अपना कोई, जब मैंने तुम्हें पुकारा।।
हे नाथ मेरे सिर ऊपर, तूने अमृत बरसाया।। 1।।
तू संग में था नित मेरे, ये नैना देख न पाए।
चंचल माया के रंग में, ये नैन रहे लिपटाए।।
मैं जितनी बार गिरा हूं, तूने पग-पग मुझे उठाया।। 2।।
भवसागर की लहरों में, भटकी जब मेरी नैया।
तट छूना भी मुश्किल था, नहीं दीखे कोई खिवैया।।
तू लहर बना सागर की, मेरी नाव किनारे लाया।। 3।।
हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा उजियारा।
निर्लेप प्रभुजी मेरे, सब जगत् तुम्हीं ने धारा।।
तेरी शरण में आकर दाता, तेरा तुझ ही को चढ़ाया।। 4।।