कैते महिपतियों को आर्यत्व की दीनी आन।
कैते कैते मानियों के मान को उतारा है।।
तेरी अप्रतिम तपश्चर्या की तेजसधारा।
तेजस्वी चारित्र्यजैसा शुक्र का सितारा है।।
काराणी कहत पाखण्डों के पारावार बीच।
बिरद का बेडा तूने पार कर डारा है।।
भूले-भटके को सत्पन्थ दिखलानेवाला।
वीर दयानन्द तू ही तेज का मिनारा है।।३२।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई