काल की कमान जागे पत्थर में प्राण जागे।
हिन्द के जवान जागे तेरे शब्दबाण से।।
भारत की शान जागे नेह के निधान जागे।
वेद धर्मध्यान जागे वेद के विधान ते।।
महामतिमान आर्य जाति की जबान जागे।
प्राण हु के प्राण जागे तेरे प्रातः गान ते।।
प्रेम की पिछान जागे आत्म अभिमान जागे।
देव दयानन्द तेरे वेद ज्ञान दान ते।।४७।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई