जगदीश चंद्र बसु

0
269

भारतीय मान्यता के अनुसार वनस्पति को भी चेतन और प्राणमय बताने वाले तथा अपने अनुसंधान कार्यों द्वारा संसार को आश्चर्यचकित कर देने वाले महान वैज्ञानिक सर जगदीश चंद बसु का कल जन्मदिन है| उनका जन्म 30 नवम्बर 1858 को ढाका के विक्रमपुर कस्बे के राढीखाल नाम के गांव में हुआ था। उनके पिता भगवान चन्द बसु फरीदपुर में डिप्टी कलेक्टर थे।

प्रारम्भिक पढाई के उपरान्त ये पढने के लिए ब्रिटेन गए और लंदन विश्वविद्यालय से बी.एस.सी की परीक्षा उत्तीर्ण की जहाँ पर बसु विश्वविख्यात वैज्ञानिकों के सम्पर्क मे आये। शिक्षा पूरी करके भारत आने पर वे प्रसिध्द प्रेसीडेन्सी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रध्यापक के पद पर नियुक्त हो गये।यहाँ जातिगत भेदभाव का सामना करते हुए भी इन्होनें बहुत से महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग किये।

उन्हीं दिनों विद्युत चुम्बकीय तरंगों का आविष्कार हुआ था और प्रो0 हर्ज ने जो प्रयोग किये उनसे विज्ञान जगत में हलचल मची हुयी थी। बसु का ध्यान भी उस ओर आकर्षित हुआ और उन्होंने भी इस क्षेत्र में प्रयोग प्रारंभ किए। इन्होंने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरु किया।

कहा जाता है कि बेतार के तारों का आविष्कार मारकोनी ने किया था ,लेकिन ऐसा नही है। मारकोनी के आविष्कार के कई वर्ष पूर्व 1855 में आचार्य बसु बंगाल के अंग्रेज गवर्नर के सामने अपने आविष्कार का प्रदर्शन कर चुके थे। उन्होंने विद्युत तरंगों से दूसरे कमरे मे घंटी बजाई और बोझ उठवाया और विस्फोट करवाया। बोस के माइक्रोवेव अनुसंधान का उल्लेखनीय पहलू यह था कि वे प्रकाश के गुणों के अध्ययन के लिए लंबी तरंग दैर्ध्य की प्रकाश तरंगों के नुकसान को समझ गए इसलिए उन्होंने अपने उपकरणों से 5 मिमी की तरंग पैदा की जो अब तक मानी गई तरंगों में सबसे छोटी थी। इस प्रकार बेतार के तारों के प्रथम आविष्कारक आचार्य बसु ही थे।

लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह इन्होंने इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इनपर आगे काम कर सकें। इसके बाद इन्होंने वनस्पति जीवविद्या में अनेक खोजें की। इन्होंने एक यन्त्र क्रेस्कोग्राफ़ का आविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। इस तरह से इन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता है और पेड़ पौधों में भी जीवन का स्पंदन है।

आचार्य बसु के इन प्रयोगों ने वनस्पति विज्ञान की एक नयी शाखा को जन्म दिया और पूरा वैज्ञानिक जगत इन अदभुत प्रयोगों से आश्चर्यचकित रह गया। ये पेटेंट प्रक्रिया के बहुत विरुद्ध थे और मित्रों के कहने पर ही इन्होंने एक पेटेंट के लिए आवेदन किया और भारत के पहले वैज्ञानिक बने जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। रेडियो विज्ञान के इस पिता और भारत माता के इस सपूत का 23 नवम्बर 1937 को निधन हो गया पर वे आज भी हम सबके हृदयों में जीवित हैं| हाल के वर्षों में आधुनिक विज्ञान को मिले इनके योगदानों को फिर मान्यता दी जा रही है और सारी दुनिया उनका लोहा मानती है| उनके जन्मदिवस पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि|

~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here