छोड़ लेखनी खेलना होगा तुमको भी तलवारों से…

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अवगत कराता तुम्हें साथियों अपने आज विचारों से।
छोड़ लेखनी खेलना होगा तुमको भी तलवारों से।। टेक।।

पलट देख इतिहास देश पर जब जब आफत आई है।
कलम रखी रह गई मेज पर सूख गई थी स्याही है।
मात-पिता का रिश्ता भूला और न जाना भाई है।
कुरुक्षेत्र के समरणांगण में जमकर हुई लड़ाई है।
न्याय कमाना होगा तुमको खंजर और दुधारों से।। 1।।

राष्ट्र विभाजन को तत्पर हैं उग्रवादी आतंकवादी।
कारगिल और द्रास की जैसे वे भूल गए हैं कुरबानी।
जहाँ राष्ट्रहित बने अनेकों वीर अमर हैं बलिदानी।
उसी राष्ट्र को तोड़ डालने दुष्टों ने मन में ठानी।
तुम्हें चुनौति देते वे अपने घातक हथियारों से।। 2।।

ताल ठोक ली एक बार तो लंकेश्वर का नाश हुआ।
पुर्तगाल मंगोल सदा के लिए तुम्हारा दास हुआ।
तुगलक मुगलवंश वीरजन तेरा ही तो ग्रास हुआ।
अंग्रेजों ने भी हार खाई तो उसका पर्दा फाश हुआ।
झूझना होगा आर्य जनों को घर में छिपे गद्दारों से।। 3।।

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