ब्रह्मविद्यायुक्त वर्ण ब्राह्मण जो शीर्शरूप।
हो गए विमुक्त वही उक्त अधिकार ते।।
क्षत्रिय बाहुस्वरूप हीन पराधीन भये।
मुक्ति के सुभक्त गिरे शक्ति के संस्कार ते।।
वैश्य उदररूप वो विशेष रोगग्रस्त भये।
भये ख्वार खस्त अविवेक व्यवहार ते।।
काराणी कहत आर्य देह के आधारथंब।
शूद्ररूप पैर काट डारे है कुठार ते।।१५।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई