चलो न मानव अकड़-अकड़ के…

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“थोडी तेरी उमर है”

चलो न मानव अकड़-अकड़ के, थोड़ी तेरी उमर है।
रूप का मान, धन अभिमान, मन में अहं भरी है।। टेक।।

भीतर-भीतर ओऽम् जुड़ो तुम, सहज ज्ञान की ओर बढ़ो तुम।
मोक्ष यहीं पे सुलभ है। रूप का मान…।। 1।।

सबको भाए रंग रसीले, कोई न चाहे दर्द हठीले।
तप की राह कठिन है। रूप का मान…।। 2।।

पुत्र के धन के और ये यश के, भाव सजीले मोह नशीले।
पल-पल की फिसलन है। रूप का मान…।। 3।।

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