रमन का जन्म नवम्बर 1888 में तमिलनाडु के त्रिचिनापल्ली नामक नगर में हुआ था। आपके पिता एक अध्यापक थे। आपकी माता का नाम पार्वती अय्यर था। आपका प्राथमिक अभ्यास विशाखापट्टनम् में हुआ। यहां आपके पिताश्री भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे।
रमन बचपन से ही अति बुद्धिमान् विद्यार्थी थे। 12 वर्ष की छोटी अवस्था में ही आपने मैट्रिक की परीक्षा पास कर दी थी। सन 1904 में आपने एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस हेतु आपको ‘अणीसुवर्णचन्द्रक’ द्वारा सम्मानित किया गया था।
मात्र 16 वर्ष की अवस्था में लिखा गया आपका लेख लन्दन से प्रकाशित ‘फिलोसोफिकल मैगझिन’ में प्रकाशित हुआ था। तत्पश्चात् आप विश्व के सुविख्यात वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आ गए। एम.ए. होने के पूर्व आपके दो लेख अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका में प्रकाशित हो गए थे। अब गणित के विषय में आपकी रुचि बढ़ गई। आपने लॉर्ड रेले नामक वैज्ञानिक के सिद्धान्त को माना था। आपने उसे अन्य स्वरूप में प्रस्तुत करते हुए उनमें स्थित खामियों का समाधान भी ढूंढ लिया, जिसे लॉर्ड रेले ने भी मान्य किया था।
सन 1907 में आपने वित्त विभाग की परीक्षा पास की और उसके अधिकारी बन गए। परन्तु डॉ. अमृतलाल सरकार के साथ आपका शोध कार्य चलता रहा। कोलकाता विश्वविद्यालय के उपकुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने आपको भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक पद का प्रस्ताव दिया जिसे रमन जी स्वीकार करते हुए विज्ञान के लिए समर्पित हो गए।
रमन का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक शोध ‘रमन-प्रभाव’ ;त्ंउंद म्`िमिबजद्ध है, जिसकी शुरुआत सन 1921 में उनके विदेशयात्रा के समय तब हुई जब आपका जहाज भूमध्य सागर से जा रहा था। 1921 से 1928 तक रमन अपने शोधकार्य में लगे रहे। आपने प्रमाणित किया कि भिन्न-भिन्न पदार्थों द्वारा प्रसारित प्रकाश के वर्णपटल में नए-नए रंग होते हैं जो मूल प्रकाश में नहीं होते। इन रंगों को आपने ‘रमन-रंग’ कहा। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन आपने मर्क्युरी लैम्प के प्रकाश के प्रयोग के आधार पर किया। इस शोध पर रमन को सन 1930 में भौतिक विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ। भौतिक विज्ञान में इस पुरस्कार को पानेवाले एशिया में आप प्रथम व्यक्ति थे। यह भारत के लिए गौरव की बात है।
इस शोध पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने आपको ‘सर’ की उपाधी से सम्मानित किया। ‘रमन-प्रभाव’ के आविष्कृत होते ही विश्वभर के करीब हज़ार वैज्ञानिक इस विषय पर शोधकार्य में लग गए। रमन ने इस सिद्धान्त द्वारा यह प्रतिपादित किया कि जब भिन्न-भिन्न वस्तुओं द्वारा प्रकाश को विभाजित किया जाएगा तब पटल पर प्रकाश की रेखाएं भी भिन्न-भिन्न ही होंगी। सोविएट सरकार ने रमन को ‘लेनिन-पुरस्कार’ से सम्मानित किया था।
सन 1934 में रमन ने बैंगलोर में “भारतीय विज्ञान अकादमी” की स्थापना की। सन 1948 में स्थापित “रमन अनुसंधान संस्थान” (बैंगलोर) के माध्यम से आप आजीवन कार्य करते रहे।
आपने भिन्न-भिन्न वाद्ययन्त्रों जैसे वीणा, मृदंग, तबला, वायोलिन आदि के ध्वनियों का अभ्यास करके उन पर स़ूक्ष्म विवेचन करते हुए अनेक परीक्षण किए। आप विज्ञान विषयक लेखन कार्य में भी कुशल थे। आपने अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कीं। ‘इण्डियन अकादमी ऑफ सायन्सीझ’ तथा ‘इण्डियन जर्नल ऑफ फिजिक्स’ की नींव भी आपने ही डाली।
विज्ञान के विषय में रमन का महत्वपूर्ण योगदान यह है कि आपने विज्ञान सम्बन्धी अनेक संस्थाओं को अध्ययन-अध्यापन हेतु सहायता प्रदान की। सन 1943 में आपने ‘रमन इन्स्टिट्यूट’ की स्थापना की। यह संस्था डॉ.सी.वी.रमन के स्वप्नों का साकार कर रही है।