- पर्वत के समान कष्ट आने पर भी नहीं डरता, सबको सहन कर जाता है।
- प्रमाणों से सिद्ध सत्य को ग्रहण करने के लिए उद्यत रहता है, दुराग्रह नहीं करता।
- उसे ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होता है कि वह सदा सत्य ही बोलता है, असत्य नहीं।
- अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहता है औश्र संगठन की स्थापना करता है।
- अन्याय को छोड़ सदा न्यायाचरण करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है।
- उसे ऐसी पवित्रता प्राप्त होती है कि वह मद्यमांसादि का सेवन नहीं करता, सदा न्यायोपार्जित भोजन को ही स्वीकार करता है।
- उसे ऐसा ज्ञान प्राप्त होता है कि वह समस्त प्राणियों को आत्मवत् देखता है, अर्थात् उनके सुख-दुःख, हानि-लाभ को अपने सुख-दुःख, हानि-लाभ समझता है।
- मानापमान से सुखी-दुःखी नहीं होता है।
- न्यायकारियों का सहयोग करता है और अन्यायकारी चक्रवर्ती राजा से भी नहीं ड़रता है।
- ईश्वर के सानिध्य से आनन्द का उपभोग करता है, अतः तन-मन-धन से प्राणिमात्र के उपकार में तल्लीन रहता है।
- उसे ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होता है कि वह सबके साथ प्रीति से व्यवहार करता है, किसी से भी द्वेष नहीं करता है।
- सदा निष्काम कर्म करता है, सकाम नहीं।
- योगी मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण प्राप्त करता है।
- समस्त क्लेशों से तथा बन्धनों से मुक्त होता है एवं ईश्वर के नित्यानन्द का अनुभव करता है।
- अविद्या का नाश और विद्या की प्राप्ति करता है।
साभार योगदर्शनम्- स्वामी सत्यपति परिव्राजक