सर्वोच्च पद के निकटतम रहते चरम स्ाििति हेतु प्रबंधन को वैदिक अर्थों में ”इलसपदे प्रबंधन“ कह सकते हैं । ”इलस“ पद ईडना स्तुति पद है । मलयापन (मल निराकरण), हीनांग पूर्ति – अस्तित्व की हर हीनता की सशक्त संपूर्ण आपूर्ति तथा अतिशयाधान – ब्रह्म गुणों की स्वयं में पूर्ति स्वयं को संस्कारित करना है । जब संस्कार – परिष्कृति सीमा तक होता है उसका स्वतः का स्वरूप नष्ट हो जाता है यह अति परिशुद्धतावस्था है । इस अवस्था में आत्मा – परमात्मा से अर्चना करती है कि मैं पवित्रतम हूँ तू आ झलक मुझमें । यही भक्ति की या योग की सर्वोच्च स्थिति है । यही ईडना है । इस स्थिति में जिसे ब्रह्म उपयुक्त श्रृत श्रृत मानकानुरूप पाता है उसी का वह वरण करता है । वरणोपयुक्त होना ही इलस पद प्रबंधन है । इस सर्वोच्च प्रबंधन की प्रक्रिया बड़ी क्रमशः कठिन है । अन्तय अवस्था में चयनाधिकार ब्रह्म के हाथों में रहता है । प्रबधक आत्मा के क्षेत्र में मात्र कर्तव्य प्रबंधन की संज्ञा दी जा सकती है ।
वर्तमान प्रबंधन व्यवस्था ग्राहक संतुष्टि को लक्ष्य मानकर चलती है । ब्रह्म संतुष्टि की तुलना में ग्राहक संतुष्टि अति कम स्तरीय संतुष्टि है । ”इलस्पद प्रबंधन“ की तुलना में जहां खरीददार आत्मा है खरीद मोक्ष है तथा विक्रेता परमात्मा है । यदि आध्यात्म को इतना सामान्य स्तर मानते हैं तो ग्राहक संतुष्टि प्रबंधन जहां हम उत्पादक हैं उपभोक्ता विषय खरीद है खरीददा ग्राहक है । यहां खरीददार अनेक हैं विभिन्न स्तरीय हैं। इस स्थिति में क्या इलस्पदे प्रबंधन लागू किया जा सकता है । बेशक लागू किया जा सकता है । एक उदाहरण से इसे स्पष्ट किया जा रहा है ।
विश्व कप फुटबाल प्रतियोगिता का यदि विश्लेषण किया जाये तो सारी की सारी टीमों का खेल देखते ”अलस्पद“ व्याख्या की जा सकती है । फूटबाल में खरीद – गोल है, खरीददार दो टीमें हैं तथा विक्रेता है रैफरी । यदि विक्रेता परिपूर्ण नियमबद्ध है तो अलसपद प्राप्त टीम ही सर्वाधिक गोल करती है यह व्यवहार से भी सिद्ध है । इस क्षेत्र अलसपद कर्तव्य है – संगठन सूक्त से कुछ अंश – व्यवहार उतारना ।
सर्व अंश उतारना – मोक्ष इलस्पद है ।
इसके तत्व हैं: (1) शक्तिशाली – शक्ति ज्योतित (2) खेल नियम व्यापक (3) इलसपद समन्वित (4) समर्पण भाव समृद्धिकर (5) संग – दौड़ (6) संग स्वर (7) संग मन – ज्ञान (8) पूर्ववत (9) बहुआयाम (10) समान समूह, इन तत्वों को हम सर्वश्रेष्ठ टीमों पर लागू करने का प्रयास करें । उदाहरण ब्राजील की टीम
- शक्तिशाली – शक्ति ज्योदितः – ब्राजील के खिलाड़ियों के पैरों में मानों छकाते समय शक्ति किरणें निकलती दिखती हैं । वह पग पिरकन फुटबाल नूतन का व्यवहार इलसपद प्रतीत होती है ।
- खेल नियम व्यापक – इस टीम की व्यवस्था का नियम पास भावना स्वयं की डी तथा प्रतिद्वन्दी टीम की ”डी“ में भी कायम रहते हैं ।
- अलस्पद समन्वित: समूह कार्य संगठन सूक्त (ऋग्वेद) समन्वित है ।
- समर्पण भाव – पूरी टीम लक्ष्य गोल हेतु समर्पित है । खिलाड़ियों का व्यक्तिगत अहं समूह गति में तिरोहित होता है ।
- समूह गति: पूरी टीम एक लहर वत गति करती बढ़ती है ।
- संग स्वर: टीक का बचाव स्तर, आक्रमण स्वर, गोल स्वर एक ही होता है ।
- संगठन पूर्ववत ज्ञान अनुसरण: टीम नियमों का अनुपालन करती है । इस टीम का फाइल रिकार्ड सबसे कम है । संभ्रात व्यवहार में इसका कोई सानी नहीं है ।
- बहु आयामी-टीम का हर खिलाड़ी स्वयं में तथा टीम सहित भी स्थान परिवर्तन, खेल परिवर्तन, स्टाइल परिवर्तन में दक्ष है ।
- समान: हर सदस्य के चेहरे पर विजय की सौम्य ठहरो ठहरो पर दृढ़ भावना जिसे संकल्पना या समान संकल्पना दिखती है ।
- समृद्धि कर: निसंदेह ऐसी टीम विजय पर निम्नलिखित कार्य व्यवहार नियमों से प्राप्त करता है:
(1) यत्न (2) अभ्यास (3) ज्ञान पूर्वक (4) नियमपूर्वक (5) तप पूर्वक (6) श्रम पूर्वक । इनके तत्वों का सामंजस्य हर एक कार्य में आवश्यक होता है ।
जैसा कि पूर्व में कहा गया है अलसपद प्रबंधन क्षमता तत्काल प्राप्त नहीं कि जा सकती है । यह अति क्रमशः की व्यवस्था है । भारतीय संस्कृति में तो इसे जनम जनम का फल या कई जीवनों की साधना के बाद इसकी प्राप्ति की योजना दी गई है ।
”इलसपद“ प्रबंधन के दो स्तर हैं । 1. व्यक्ति स्तर, 2. समूह स्तर।
अधकचरी भीड़ या प्रजातंत्रीय प्रजा कभी इलसपद की क्षमता को समझ भी नहीं सकती है । अगर प्रजा जो व्यक्ति व्यक्ति स्तर समझदार सुप्रशिक्षित नहीं है तथा हो भी नहीं सकती है वर्तमान प्रजातंत्र व्यवस्था मंे की एक टीम बनाकर फुटबाल मैदान में उतार दी जाये तो वह विश्व की सारी टीमों में फीसदी टीम होगी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार प्रजातंत्र फीसदी व्यवस्था है । इसीलिए इलस्पदे का पहला महत्वपूर्ण स्तर है व्यक्ति स्तर का उन्नत होना ।
समूह स्तर: समूह स्तर कार्य के कई प्रारूप हैं =
(1) मित्र समूह
(2) परिवार समूह
(3) स्कूल समूह
(4) मुहल्ला, नगर, प्रांत देशादि समूह
(5) उद्योग समूह या कार्य समूह,
(6) खेल – समूह,
मित्र समूह में उद्देश्य मित्रता, परिवार समूह में अश्वाता (गतिशीलता), स्कूल समूह में शिक्षा, मुहल्ला समूह में रख रखाव, उद्योग समूह में उत्पादकता, खेल समूह में विजय होता है । इन समस्त समूहों को एक मानक कार्य समूह जिसे इलस्पद कहा जा सकता है के भाव से स्तरीकृत उद्देश्यानुसार किया जा सकता है। समूह कार्य का सर्वोच्च स्तर इलस्पद प्रबंधन से प्राप्त किया जा सकता है । भारतीय संस्कृति चेतन्यता तथ ज्ञान केन्द्रित हैं । पाश्चात्य संस्कृति वर्तमान में चैतन्यता तथा ज्ञान केन्द्रित होने की ओर बढ़ रही है । इसके चैतन्यता तथा ज्ञान केन्द्रित होने के प्रत्यय अविकसित या विकासशील हैं । भारतीय संस्कृति में इलस्पद प्रबंधन क्षेत्र में समूह चेतना का अतिप्रांजल, गहन स्वरूप संगठन सूक्त में दिया हुआ है । इसके आधार तत्व निम्नलिखित हैं:
(1) वृषन: शक्तिशाली प्रभुत्व संपन्न (2) अर्थ = श्रेष्ठ (3) अब्ने = तेजस्वी (4) विश्वानिइत संसआ = युवसे = मानव मशीन, पदार्थों, उत्पादकों को (5) इत = निश्चय (6) वसूनि आभार = भौतिक सुखद पर्यावरण प्राप्त हो = कब तब जब (7) इलस्पद की (8) सब समिधा प्रकाश हो जायें = (इलस्पदे सं इध्यसे) (9) संगच्छध्वं = मिलकर प्रगति हेतु गति (10) संवदध्वं = उत्तम संवाद (11) वः मर्नासि = सबके मन एक (12) सं जानता = भूषण भूत सम्यक = गुणों से भरे सम सहज, (13) पूर्वे पूर्व के स्थापित ज्ञान तथा (14) संजानाना देवा = प्रतिवर्कतों का पूर्वानुभव तथा ज्ञान स्वयं में जमा (15) उपासते = लक्ष्य निकटतम होते (16) जैसे पूर्व प्रसिद्ध वैसे प्रसिद्ध बनें (17) मंत्र सबका विचार हो एक (18) समिति: सभा हो (19) समानी (समान सभा हो)
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)