सारे आर्यावर्त में न आर्यत्व को रह्यो अंश।
धर्म कर्म ध्वंस को अघोर काल आयो है।।
आतंक उत्ताप अभिशाप के सन्ताप साथ।
पाप को अमाप ताप क्षिति पे छवायो है।।
नाचत निशाचर हय राचत पिशाच प्रेत।
दुराचार राज दुराचारियों को भायो है।।
नीति-रीति नेम हय न व्हेम है विनाश वहां।
प्रेम का प्रकाश दयानन्द ने दिखायो है।।१०।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई