अवतार…

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धन्न धर्मभूमि धन्न टंकारा की धरा धन्न।

जहां जन्म धरे धर्म धुरि के टंकारी है।।

उन्नीसवी सदी धन्न अस्सीवे सुवर्ष धन्न।

आषाढी संध्या हो धन्न दिन मनोहारी है।।

बाल ब्रह्मचारी वेदधर्म के विहारी धन्न।

धन्न मात धन्न तात कृष्णजी तिवारी है।।

आर्य अभिमान धन्न मूलजी नामाभिधान।

दया के निधान दयानन्द दयाधारी है।।२।।

~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई

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