चटगाँव शस्त्रागार पर हमला कर अंग्रेजी सरकार को नाको चने चबाने के लिए मजबूर करने वाले क्रांतिकारियों के दल में से एक प्रसिद्द क्रांतिकारी अम्बिका चक्रवर्ती का जन्म 1892 में नन्दकुमार चक्रवर्ती के यहाँ हुआ था। वे अपने विद्यालयी जीवन से ही देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के बारे में सोचने लगे थे। कांग्रेस के अहिंसात्मक आन्दोलन को वो कायरता का दूसरा नाम समझते थे और इसीलिए उनका झुकाव सशस्त्र क्रान्ति की तरफ हो गया।शीघ्र ही उनका जुड़ाव चटगाँव में क्रान्ति की पाठशाला और भारतीय क्रांतिकारी आकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र मास्टर सूर्यसेन उपाख्य मास्टर दा से हो गया जिसके बाद अम्बिका चक्रवर्ती के जीवन में क्रांतिपथ का राही बनने के अतिरिक्त अन्य कोई अभिलाषा शेष रही ही नहीं। अंग्रेजी सरकार की चूलें हिलाने के लिए मास्टर दा ने अपने साथियों के साथ चटगाँव शस्त्रागार पर आक्रमण करने की एक ऐसी योजना बनायीं जिसके बारे में सोचकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
तय योजना के अनुसार 18 अप्रैल 1930 को मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में आनंद गुप्ता, अर्धेन्दु दस्तीदार, अनंत सिंह, कल्पना दत्त, प्रीतिलता वाडेदार, शशांक दत्त, नरेश राय, निर्मल सेन, जीबन घोषाल, तारकेश्वर दस्तीदार, सुबोध राय, हरगोपाल बल, लोकनाथ बल, गणेश घोष एवं अम्बिका चक्रवर्ती आदि ने चटगाँव शस्त्रागार पर आक्रमण किया। मास्टर दा के निर्देश पर अम्बिका चक्रवर्ती ने अपने कुछ साथियों के साथ उस पूरे इलाके की संचार व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया ताकी अंग्रेजी प्रशासन को सूचनाओं के आदान प्रदान में कठिनाइयों का सामना करना पड़े और इस स्थिति का लाभ उठाकर क्रांतिकारी अपनी स्थिति को मजबूत कर सकें।
22 अप्रैल 1930 को जलालाबाद में अंग्रेजी पुलिस के साथ हुयी एक मुठभेड़ में वे बुरी तरह से घायल हो गए पर बच निकलने में कामयाब रहे। परन्तु कुछ माह बाद पुलिस ने उनके छिपने के स्थान को खोज निकाला और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुना दी गयी, जिसे बाद में आजन्म कारवास में बदल कर उन्हें कालापानी की सजा भुगतने के लिए अंडमान की सेल्युलर जेल भेज दिया गया, जहाँ वो 1946 तक कैद रहे। 1946 में अपनी मुक्ति के पश्चात अम्बिका चक्रवर्ती कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और शोषित वर्ग के लिए कार्य करने लगे। 1952 में हुए चुनाव में वे बंगाल विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और विधानसभा में पीड़ित-शोषित समुदाय की आवाज के रूप में पहचाने गए। 6 मार्च 1962 को उनका कलकत्ता में एक सड़क दुर्घटना में दुखद निधन हो गया पर हमारे हृदयों में वे सदैव् जीवित रहेंगे। कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी