अति आत्म या एकी साधना (संक्षिप्त प्रारूप)

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स्थिरं सुखम् आसनम्।।१।।
स्व आकलन।।२।।
त्रि दीर्घ सम विपश्यना।।३।।
दीर्घ समगति ‘‘अगाओ’’ उच्चारण।।४।।
सुचालनम्।।५।।
पादयोः
ऊर्वोः
बाहुभ्यां यशोबलम्
करतलकरपृष्ठे
सुचालनम्।।५।।
सुस्थिरम्।।६।।
नाभिः
हृदयम्
कण्ठः
शिरः
सुस्थिरम्।।६।।
नवद्वारम्।।७।।
पायु
उपायु
मुख
द्वि नाक
द्वि आंख
द्वि कान
नवद्वारम्।।७।।
द्वि द्वारम्।।८।।
नाभि
मूर्धा
द्वि द्वारम्।।८।।
अष्टचक्र।।९।।
भूः मूलाधार
जनः
स्वः
महः
अनाहतः
तपः
भुवः
सत्यम्सहस्रार
अष्टचक्र।।९।।
सप्त ऋषि।।१०।।
वाक् वाक्।।१०/१।।
अपरा
परा
पश्यन्ती
मध्यमा
वैखरी
अभिव्यक्ता
अव्यक्ता
वाक् वाक्।।१०/१।।
प्राणः प्राणः।।१०/२।।
प्राण
अपान
समान
व्यान
उदान
प्राणः प्राणः।।१०/२।।
चक्षुः चक्षुः।।१०/३।।
सूर्य है ज्योति ज्योति है सूर्य स्वाहा
सूर्य है वर्च ज्योति है वर्च स्वाहा
ज्योति है सूर्य ज्योति है सूर्य स्वाहा
अग्नि है ज्योति ज्योति है अग्नि स्वाहा
अग्नि है वर्च ज्योति है वर्च स्वाहा
ज्योति है अग्नि ज्योति है अग्नि स्वाहा
चक्षुः चक्षुः।।१०/३।।
श्रोत्रं श्रोत्रम्।।१०/४।।
प्राची
दक्षिणा
प्रतीची
उदीची
ध्रुवा
ऊर्ध्वा
अदिति
श्रोत्रं श्रोत्रम्।।१०/४।।
सप्त ऋषि।।१०।।
पंच कोष।।११।।
अन्नमय कोष
प्राणमय कोष
मनोमय कोष
विज्ञानमय कोष
आनन्दमय कोष
पंच कोष।।११।।
पंच अवस्था।।१२।।
जागृत
स्वप्न
सुषुप्ति
तुरीय
तुरीयातीत
पंच अवस्था।।१२।।
पंच साधना।।१३।।
अन्तर्स्पर्श
अन्तर्रस
अन्तर्गन्ध
अन्तर्रूप
अन्तर्शब्द
पंच साधना।।१३।।
त्रि शरीर।।१४।।
स्थूल शरीर
सूक्ष्म शरीर
अव्याहत शरीर
त्रि शरीर।।१४।।
सप्त आत्म सप्त अति आत्म।।१५।।
सूक्ष्मतम में महानतम सूक्ष्मतम
सुकंपनशील में अकंपनशील सर्वगतिदाता
सत्चित्में सत्चित्आनन्द
चिद्बिन्दु में चिद्बिन्दु आनन्द
ब्रह्म निकटतम में दूर से दूरतम निकट से निकटतम
तत्वं सुपदार्थ में सर्वत्र सम
ब्रह्मित में खं ब्रह्म
सप्त आत्म सप्त अति आत्म।।१५।।
त्रि वाक्।।१६।।
आदि मध्य अन्त सम
अगाओ थम्अगाओ थम अगाओ थम्
त्रि वाक्।।१६।।
किसकी अर्चना उसकी अर्चना।।१७।।
आत्मधा आत्मदा
शृतधा शृतदा
अमृतधा अमृत छाया
ओजधा ओजदा
ऋतधा ऋतदा
बलधा बलदा
शृत्विजा ऋत्विजा
गृहनियंता हिरण्यगर्भा
पूर्णधा पूर्णदा
किसकी अर्चना उसकी अर्चना।।१७।।
अगाओ पूर्णम्।।१८।।
पूर्ण है यह
पूर्ण है वह
पूर्ण है यह वह
पूर्ण है
पूर्ण को कहते हैं पूर्ण
पूर्ण से पूर्ण आहर
पूर्ण ही बचता शेष
पूर्ण है अशेष
अगाओ पूर्णम्।।१८।।
मैं हूं पूर्ण में।।१९।।
तैरता सा दौड़ता
दौड़ता सा तैरता
उड़ता सा तैरता
तैरता सा उड़ता
अमृत हूं ओढ़ता
अमृत हूं बिछाता
अमृत हूं पीता
अमृत हूं जीता
मैं हूं पूर्ण में।।१९।।
अध्यात्म अवतरणम्।।२०।।
अगाओ आत्म में
आत्म अर्थ में
अर्थ बुद्धि में
बुद्धि चित्ज्ञान में
चित्ज्ञान मन में
मन ज्ञानेन्द्रियों में
ज्ञानेन्द्रियां कर्मेंन्द्रियों में
कर्मेंन्द्रियां सुपथ में
अध्यात्म अवतरणम्।।२०।।
शृत ऋत अवतरणम्।।२१।।
शृतम्भरा मेधा
ऋतम्भरा प्रज्ञा
ऋग्वेद वाक्में
यजुर्वेद मन में
सामवेद प्राणन में
अथर्ववेद इन्द्रियन में
आयुर्वेद तन में
नाट्यवेद जीवन में
शृत ऋत अवतरणम्।।२१।।
सुजीवनम्।।२२।।
ज्ञान श्रम तप नियम सुरचना
श्री समृद्धि यशमयी सुरचना
धर्म अर्थ काम मोक्ष सुजीवनम्
सुजीवनम्।।२२।।
पवित्र अवतरणम्।।२३।।
आरोह इमं सुखं रथम्
अगाओ आत्म पवित्र
अगाओ आत्म में
आत्म अन्तर्अस्तित्व पवित्र
अन्तर्अस्तित्व आत्म में
अन्तर्अस्तित्व प्रज्ञा पवित्र
अन्तर्अस्तित्व प्रज्ञा में
अन्तर्ज्योति नेत्र पवित्र
अन्तर्ज्योति नेत्र में
अन्तर्शब्द कर्ण पवित्र
अन्तर्शब्द कर्ण में
अन्तर्गन्ध नासिका पवित्र
अन्तर्गन्ध नासिका में
अन्तर्रस रसना पवित्र
अन्तर्रस रसना में
अन्तर्स्पर्श त्वक्पवित्र
अन्तर्स्पर्श त्वक्में
अन्तर्स्वर कण्ठ पवित्र
अन्तर्स्वर कण्ठ में
अन्तर्अक्षर वाक्पवित्र
अन्तर्अक्षर वाक्में
अन्तर्महत्हृदय पवित्र
अन्तर्महत्हृदय में
अन्तर्स्फुरण नाभि पवित्र
अन्तर्स्फुरण नाभि में
अन्तर्बल तन पवित्र
अन्तर्बल तन में
अन्तर्ओज अन्तःकरण पवित्र
अन्तर्ओज अन्तःकरण में
खं ब्रह्म सर्वत्र पवित्र
खं ब्रह्म सर्वत्र में
अगाओ सर्वत्र पवित्र
अगाओ सर्वत्र में
पवित्र अवतरणम्।।२३।।
शत अधिकम् जीवनम्।।२४।।
तब अब तब अगाओ ब्रह्म
अस्थाई अब हम
अगाओ युजित हम
देखें अगाओ शत अधिकम्
सुनें अगाओ शत अधिकम्
श्वासें अगाओ शत अधिकम्
कहें अगाओ शत अधिकम्
आस्वादें अगाओ शत अधिकम्
स्पर्शें अगाओ शत अधिकम्
रहें अगाओ शत अधिकम्
आरोहें अगाओ शत अधिकम्
स्वस्थ अगाओ शत अधिकम्
अदीन अगाओ शत अधिकम्
शत अधिकम् जीवनम्।।२४।।
दिव्य शान्ति अवतरणम्।।२५।।
द्युतिशील शान्त प्राप्त
अन्तरिक्ष शान्त प्राप्त
आधार धरा शान्त प्राप्त
प्रवहणशील शान्त प्राप्त
औषध अनाज शान्त प्राप्त
वनस्पति रस शान्त प्राप्त
शृत शान्त प्राप्त
ऋत शान्त प्राप्त
महादेव शान्त प्राप्त
देव शान्त प्राप्त
प्रदेव शान्त प्राप्त
उपदेव शान्त प्राप्त
अगाओ शान्त प्राप्त
शान्ति शान्त प्राप्त
सर्व सामंजस्य शान्त प्राप्त
आधिदैविक शान्त प्राप्त
आधिभौतिक शान्त प्राप्त
अध्यात्म शान्त प्राप्त
दिव्य शान्ति अवतरणम्।।२५।।
दीर्घ सम गति ‘‘अगाओ’’ उच्चारण।।२६।।
त्रि दीर्घ सम विपश्यना।।२७।।
स्व आकलन।।२८।।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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